जैसे बबूल के पौधे को चंदन की टहनियों से सुरक्षित रखा जाता है या कांच के क्रिस्टल को सुरक्षा के लिए सोने की पेटी में रखा जाता है।
जैसे मैला खाने वाला कौआ अपनी सुन्दरता और जीवन-शैली पर गर्व प्रकट करता है या सियार शेर की मांद में जाने की इच्छा प्रकट करता है,
जैसे गधा हाथी का मजाक उड़ाता है और चोर बादशाह को दण्ड देता है, वैसे ही मदिरा अपना क्रोध दूध पर प्रकट करती है।
ये सब कलियुग की उल्टी चालें हैं। पुण्यात्माएँ दबी हुई हैं और अपराधी पाप करते रहते हैं। (इस कलियुग में पाप और पाप का बोलबाला है और पुण्यात्माएँ छिपकर रह रही हैं।) (532)