जिस प्रकार कंजूस व्यक्ति की धन की लालसा कभी तृप्त नहीं होती, उसी प्रकार गुरु के उस सिख की आंखें भी तृप्त नहीं होतीं, जिसने यह जान लिया है कि सच्चे गुरु का स्वरूप एक अद्वितीय निधि है, जिसके दर्शन से कभी तृप्ति नहीं होती।
जिस प्रकार दरिद्र की भूख कभी शांत नहीं होती, उसी प्रकार गुरसिख के कान भी सदैव सच्चे गुरु के अमृतमय वचनों को सुनने के लिए लालायित रहते हैं, तथापि उन अमृतमय वचनों को सुनकर भी उनकी चेतना की प्यास नहीं बुझती।
गुरसिख की जीभ सच्चे गुरु के प्रमुख गुणों को याद करती रहती है और एक बरसाती पक्षी की तरह जो और अधिक के लिए चिल्लाता रहता है, वह कभी तृप्त नहीं होती।
सच्चे गुरु के अद्भुत स्वरूप के दर्शन, श्रवण और उच्चारण से सिख का अन्तःकरण आनन्दमय प्रकाश से आलोकित हो रहा है - जो कि समस्त सद्गुणों का भण्डार है। फिर भी ऐसे गुरसिख की प्यास और भूख कभी कम नहीं होती।