जब कोई भक्त भगवान के नाम का ध्यान करता हुआ उनके प्रेममयी अमृत का पान करके तृप्त हो जाता है, तो उसे उच्च आध्यात्मिक स्तरों पर अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है।
उसके (भक्त के) मन में आध्यात्मिक विचारों की बहुरंगी लहरें उठने लगती हैं, तथा उसके शरीर का प्रत्येक अंग विचित्र एवं अद्वितीय तेज का उत्सर्जन करके प्रभु की महिमा का गान करने लगता है।
भगवान के नाम रूपी प्रेमामृत का रसपान अद्भुत है। सभी संगीत विधाओं और उनकी संगिनी की मनमोहक धुनें कानों में सुनाई देती हैं। नासिकाओं में असंख्य सुगंधियों की गंध आती है।
और चेतना के सर्वोच्च आध्यात्मिक आसन (दसवें छिद्र) में निवास करने से, व्यक्ति सभी आध्यात्मिक स्तरों की विचित्र और भव्य महिमा का आनंद लेता है। उस अवस्था में रहने से शरीर, मन और आत्मा को पूर्ण स्थिरता मिलती है। यह सबसे उत्तम अवस्था है।