जिस प्रकार सूर्य कितना भी कठोर और गर्म क्यों न हो, लेकिन बिना अग्नि के भोजन पकाना असम्भव है।
जैसे ओस रात में पहाड़ों और घास को भिगो देती है, लेकिन बिना पानी पिए वह ओस किसी की प्यास नहीं बुझा सकती।
जैसे गर्मी के मौसम में शरीर से पसीना निकलता है जो फूंक मारकर नहीं सुखाया जा सकता, पंखा झलने से ही सूख जाता है और आराम मिलता है।
इसी प्रकार देवताओं की सेवा करने से मनुष्य को बार-बार जन्म-मरण से मुक्ति नहीं मिल सकती। सच्चे गुरु का आज्ञाकारी शिष्य बनकर ही उच्च आध्यात्मिक स्थिति प्राप्त की जा सकती है। (४७१)