कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 471


ਜੈਸੇ ਘਾਮ ਤੀਖਨ ਤਪਤਿ ਅਤਿ ਬਿਖਮ ਬੈਸੰਤਰਿ ਬਿਹੂਨ ਸਿਧਿ ਕਰਤਿ ਨ ਗ੍ਰਾਸ ਕਉ ।
जैसे घाम तीखन तपति अति बिखम बैसंतरि बिहून सिधि करति न ग्रास कउ ।

जिस प्रकार सूर्य कितना भी कठोर और गर्म क्यों न हो, लेकिन बिना अग्नि के भोजन पकाना असम्भव है।

ਜੈਸੇ ਨਿਸ ਓਸ ਕੈ ਸਜਲ ਹੋਤ ਮੇਰ ਤਿਨ ਬਿਨੁ ਜਲ ਪਾਨ ਨ ਨਿਵਾਰਤ ਪਿਆਸ ਕਉ ।
जैसे निस ओस कै सजल होत मेर तिन बिनु जल पान न निवारत पिआस कउ ।

जैसे ओस रात में पहाड़ों और घास को भिगो देती है, लेकिन बिना पानी पिए वह ओस किसी की प्यास नहीं बुझा सकती।

ਜੈਸੇ ਹੀ ਗ੍ਰੀਖਮ ਰੁਤ ਪ੍ਰਗਟੈ ਪ੍ਰਸੇਦ ਅੰਗ ਮਿਟਤ ਨ ਫੂਕੇ ਬਿਨੁ ਪਵਨੁ ਪ੍ਰਗਾਸ ਕਉ ।
जैसे ही ग्रीखम रुत प्रगटै प्रसेद अंग मिटत न फूके बिनु पवनु प्रगास कउ ।

जैसे गर्मी के मौसम में शरीर से पसीना निकलता है जो फूंक मारकर नहीं सुखाया जा सकता, पंखा झलने से ही सूख जाता है और आराम मिलता है।

ਤੈਸੇ ਆਵਾਗੌਨ ਨ ਮਿਟਤ ਨ ਆਨ ਦੇਵ ਸੇਵ ਗੁਰਮੁਖ ਪਾਵੈ ਨਿਜ ਪਦ ਕੇ ਨਿਵਾਸ ਕਉ ।੪੭੧।
तैसे आवागौन न मिटत न आन देव सेव गुरमुख पावै निज पद के निवास कउ ।४७१।

इसी प्रकार देवताओं की सेवा करने से मनुष्य को बार-बार जन्म-मरण से मुक्ति नहीं मिल सकती। सच्चे गुरु का आज्ञाकारी शिष्य बनकर ही उच्च आध्यात्मिक स्थिति प्राप्त की जा सकती है। (४७१)