कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 325


ਜੈਸੇ ਤਉ ਅਕਸਮਾਤ ਬਾਦਰ ਉਦੋਤ ਹੋਤ ਗਗਨ ਘਟਾ ਘਮੰਡ ਕਰਤ ਬਿਥਾਰ ਜੀ ।
जैसे तउ अकसमात बादर उदोत होत गगन घटा घमंड करत बिथार जी ।

जैसे आकाश में अचानक गहरे काले बादल प्रकट हो जाते हैं और चारों दिशाओं में फैल जाते हैं।

ਤਾਹੀ ਤੇ ਸਬਦ ਧੁਨਿ ਘਨ ਗਰਜਤ ਅਤਿ ਚੰਚਲ ਚਰਿਤ੍ਰ ਦਾਮਨੀ ਚਮਤਕਾਰ ਜੀ ।
ताही ते सबद धुनि घन गरजत अति चंचल चरित्र दामनी चमतकार जी ।

उनकी गड़गड़ाहट से बहुत तेज ध्वनि उत्पन्न होती है और तेज बिजली चमकती है।

ਬਰਖਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਜਲ ਮੁਕਤਾ ਕਪੂਰ ਤਾ ਤੇ ਅਉਖਧੀ ਉਪਾਰਜਨਾ ਅਨਿਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਜੀ ।
बरखा अंम्रित जल मुकता कपूर ता ते अउखधी उपारजना अनिक प्रकार जी ।

फिर मीठी, ठंडी, अमृत-सी वर्षा की बूंदें जब स्वाति की बूंद सीप पर गिरती है तो मोती उत्पन्न करती है, कपूर जब केले पर गिरता है तो अनेक उपयोगी जड़ी-बूटियां उत्पन्न होती हैं।

ਦਿਬਿ ਦੇਹ ਸਾਧ ਜਨਮ ਮਰਨ ਰਹਿਤ ਜਗ ਪ੍ਰਗਟਤ ਕਰਬੇ ਕਉ ਪਰਉਪਕਾਰ ਜੀ ।੩੨੫।
दिबि देह साध जनम मरन रहित जग प्रगटत करबे कउ परउपकार जी ।३२५।

सत्कर्म करने वाले बादल की तरह गुरु-चेतन शिष्य का शरीर दिव्य होता है। वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होता है। वह इस संसार में भलाई करने के लिए आता है। वह दूसरों को भगवान तक पहुँचने और उन्हें पाने में मदद करता है। (325)