गुरु की प्रिय और प्रियतम मानी जाने वाली, जिसकी अनेक स्त्रियाँ हैं, जब गुरु का आशीर्वाद लेने की बारी आई तो वह अज्ञान की नींद में डूब गई। नींद से भरी आँखों ने मुझे सब कुछ से बेखबर कर दिया।
परन्तु जिन सिख प्राणियों के हृदय में प्रेम उमड़ आया, जब उन्होंने सुना कि उनके स्वामी आ रहे हैं, तो उन्होंने नींद त्याग दी और मिलन के प्रति अपने विश्वास और प्रेम में सजग रहे।
अपने मालिक का प्रिय होने के बावजूद मैं अज्ञानता की नींद में सोता रहा। अपने सुखदायी प्रियतम से मिलने से वंचित रहा। जहाँ भी रहा, अलग-थलग रहा, उनके प्यार और आशीर्वाद से वंचित रहा। यही अज्ञानता की नींद ने मुझे परेशान कर दिया।
इस स्वप्न-सी घटना ने मुझे प्रियतम से मिलने नहीं दिया। अब वियोग की मृत्यु-सी रात्रि न समाप्त होती है, न समाप्त होती है। (219)