कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 545


ਸਰਪ ਕੈ ਤ੍ਰਾਸ ਸਰਨਿ ਗਹੈ ਖਰਪਤਿ ਜਾਇ ਤਹਾ ਜਉ ਸਰਪ ਗ੍ਰਾਸੈ ਕਹੋ ਕੈਸੇ ਜੀਜੀਐ ।
सरप कै त्रास सरनि गहै खरपति जाइ तहा जउ सरप ग्रासै कहो कैसे जीजीऐ ।

यदि कोई सर्प के भय से गरुड़ की शरण ले और फिर भी सर्प आकर डस ले, तो फिर कैसे बचेगा?

ਜੰਬਕ ਸੈ ਭਾਗਿ ਮ੍ਰਿਗਰਾਜ ਕੀ ਸਰਨਿ ਗਹੈ ਤਹਾਂ ਜਉ ਜੰਬਕ ਹਰੈ ਕਹੋ ਕਹਾਂ ਕੀਜੀਐ ।
जंबक सै भागि म्रिगराज की सरनि गहै तहां जउ जंबक हरै कहो कहां कीजीऐ ।

सियार के डर से यदि कोई सिंह की शरण ले ले तो यदि सियार आकर मार डाले तो क्या किया जा सकता है ?

ਦਾਰਿਦ੍ਰ ਕੈ ਚਾਂਪੈ ਜਾਇ ਸਮਰ ਸਮੇਰ ਸਿੰਧ ਤਹਾਂ ਜਉ ਦਾਰਿਦ੍ਰ ਦਹੈ ਕਾਹਿ ਦੋਸੁ ਦੀਜੀਐ ।
दारिद्र कै चांपै जाइ समर समेर सिंध तहां जउ दारिद्र दहै काहि दोसु दीजीऐ ।

यदि कोई व्यक्ति दरिद्रता से व्यथित होकर सोने की खान, सुमेर पर्वत या हीरों के भण्डार वाले समुद्र में जाकर शरण ले ले और फिर भी वह दरिद्रता से व्यथित रहे तो इसमें किसे दोष दिया जाए?

ਕਰਮ ਭਰਮ ਕੈ ਸਰਨਿ ਗੁਰਦੇਵ ਗਹੈ ਤਹਾਂ ਨ ਮਿਟੈ ਕਰਮੁ ਕਉਨ ਓਟ ਲੀਜੀਐ ।੫੪੫।
करम भरम कै सरनि गुरदेव गहै तहां न मिटै करमु कउन ओट लीजीऐ ।५४५।

भटकन और कर्मों के प्रभाव से मुक्ति पाने के लिए मनुष्य सच्चे गुरु का आश्रय लेता है और यदि तब भी कर्मों का चक्र समाप्त न हो तो फिर किसकी शरण ली जाए? (545)