गुरु-चेतना वाला साधक समाज में सांसारिक प्राणी की तरह रहता है और विद्वानों के बीच ज्ञानी की तरह आचरण करता है। फिर भी उसके लिए ये सभी सांसारिक कर्म हैं और वह इनसे अछूता रहता है। वह भगवान की याद में मग्न रहता है।
योग साधना साधक को भगवान से सच्चा मिलन नहीं कराती। सांसारिक सुख भी सच्चे आराम और शांति से रहित हैं। इस प्रकार गुरु-चेतन व्यक्ति खुद को ऐसे विकर्षणों से मुक्त रखता है और अपने ध्यान में लीन होकर सच्चे आनंद का आनंद लेता है।
गुरु-चेतन व्यक्ति की दृष्टि हमेशा अपने गुरु की झलक पर केंद्रित रहती है। उसका मन हमेशा भगवान के नाम के स्मरण में लीन रहता है। ऐसी दिव्य जागरूकता प्राप्त करने पर, वह भगवान के प्रेम के दिव्य खजाने को प्राप्त करने में सक्षम होता है।
वह मन, वचन और कर्म से जो भी अच्छा काम करता है, वह सब आध्यात्मिक होता है। वह नाम सिमरन के परम खजाने में सभी सुखों का आनंद लेता है। (60)