कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 558


ਜੈਸੇ ਪਾਟ ਚਾਕੀ ਕੇ ਨ ਮੂੰਡ ਕੇ ਉਠਾਏ ਜਾਤ ਕਲਾ ਕੀਏ ਲੀਏ ਜਾਤ ਐਂਚਤ ਅਚਿੰਤ ਹੀ ।
जैसे पाट चाकी के न मूंड के उठाए जात कला कीए लीए जात ऐंचत अचिंत ही ।

जिस प्रकार पानी की चक्की का पत्थर सिर पर उठाकर नहीं ले जाया जा सकता, बल्कि किसी विधि या मशीन का प्रयोग करके खींचा जा सकता है।

ਜੈਸੇ ਗਜ ਕੇਹਰ ਨ ਬਲ ਕੀਏ ਬਸ ਹੋਤ ਜਤਨ ਕੈ ਆਨੀਅਤ ਸਮਤ ਸਮਤ ਹੀ ।
जैसे गज केहर न बल कीए बस होत जतन कै आनीअत समत समत ही ।

जिस प्रकार शेर और हाथी को बलपूर्वक नियंत्रित नहीं किया जा सकता, परन्तु विशेष तरीकों के प्रयोग से उन्हें आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।

ਜੈਸੇ ਸਰਿਤਾ ਪ੍ਰਬਲ ਦੇਖਤ ਭਯਾਨ ਰੂਪ ਕਰਦਮ ਚੜ੍ਹ ਪਾਰ ਉਤਰੈ ਤੁਰਤ ਹੀ ।
जैसे सरिता प्रबल देखत भयान रूप करदम चढ़ पार उतरै तुरत ही ।

जिस प्रकार बहती नदी खतरनाक लगती है, लेकिन उसे नाव से आसानी से और शीघ्रता से पार किया जा सकता है।

ਤੈਸੇ ਦੁਖ ਸੁਖ ਬਹੁ ਬਿਖਮ ਸੰਸਾਰ ਬਿਖੈ ਗੁਰ ਉਪਦੇਸ ਜਲ ਜਲ ਜਾਇ ਕਤ ਹੀ ।੫੫੮।
तैसे दुख सुख बहु बिखम संसार बिखै गुर उपदेस जल जल जाइ कत ही ।५५८।

इसी प्रकार, दुख और पीड़ा असहनीय होती है और व्यक्ति को अस्थिर अवस्था में छोड़ देती है। लेकिन सच्चे गुरु की सलाह और दीक्षा से सभी दुख और पीड़ाएं दूर हो जाती हैं और व्यक्ति शांत, स्थिर और संयमित हो जाता है। (558)