जिस प्रकार सूर्योदय के साथ तारे लुप्त हो जाते हैं, उसी प्रकार सिख भी सच्चे गुरु से प्राप्त ज्ञान तथा उनके वचनों पर मन को केन्द्रित करने के कारण देवी-देवताओं की पूजा व सेवा के प्रति उदासीन हो जाता है।
जिस प्रकार दुकानों, रास्तों, सड़कों और घाटों की रौनक समय के साथ कम हो जाती है, उसी प्रकार वेदों के सांसारिक ज्ञान, तर्क और अतार्किकता से उत्पन्न संशय और अज्ञान भी सच्चे गुरु के ज्ञान के प्रकट होने पर कम हो जाते हैं।
रात्रि के अंधेरे में चोर, दुष्ट व्यक्ति और जुआरियों की गतिविधियां फलती-फूलती रहती हैं, लेकिन भोर होते ही सच्चे गुरु द्वारा अपने शिष्यों में बताए गए स्नान और ध्यान का अनूठा प्रभाव स्पष्ट दिखाई देने लगता है।
अन्य देवी-देवताओं के उपासक त्रिगुणात्मक माया के मैल या किसी तालाब के मेढक या रेत में पड़े बेकार के सीप ही हो सकते हैं। परंतु मानसरोवर-रूपी मण्डल में नाम प्रदान करने वाली सभी निधियाँ और अमूल्य वस्तुएं, भगवान द्वारा आशीर्वादित हैं।