लाखों सुख-सुविधाएँ और लाखों परमानंद भी उस सुख-सुविधा और परमानंद के निकट नहीं पहुँच सकते जो उसकी प्राप्ति से प्राप्त होता है।
लाखों समभाव की अवस्थाएं भी उनकी स्थिरता की स्थिति तक नहीं पहुंच सकतीं, न ही लाखों स्तुति के सुखद गीत उनके द्वारा प्रदत्त सुख के आनंद को छू सकते हैं।
करोड़ों ऐश्वर्य भी उनकी महिमा की बराबरी नहीं कर सकते और न ही करोड़ों अलंकरण उनके रूप तक पहुँच सकते हैं।
जिस पर प्रभु का नाम कृपा हो गई है और जिसे प्रभु के हृदय रूपी शयन-शय्या पर बुलाकर शुभ आमंत्रण का अवसर मिल गया है, उस पर करोड़ों चार इच्छित तत्व (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) नहीं पहुँच सकते। (६५१)