कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 651


ਕੋਟਨ ਕੋਟਾਨਿ ਸੁਖ ਪੁਜੈ ਨ ਸਮਾਨਿ ਸੁਖ ਆਨੰਦ ਕੋਟਾਨਿ ਤੁਲ ਆਨੰਦ ਨ ਆਵਹੀ ।
कोटन कोटानि सुख पुजै न समानि सुख आनंद कोटानि तुल आनंद न आवही ।

लाखों सुख-सुविधाएँ और लाखों परमानंद भी उस सुख-सुविधा और परमानंद के निकट नहीं पहुँच सकते जो उसकी प्राप्ति से प्राप्त होता है।

ਸਹਜਿ ਕੋਟਾਨਿ ਕੋਟਿ ਪੁਜੈ ਨ ਸਹਜ ਸਰ ਮੰਗਲ ਕੋਟਾਨਿ ਸਮ ਮੰਗਲ ਨ ਪਾਵਹੀ ।
सहजि कोटानि कोटि पुजै न सहज सर मंगल कोटानि सम मंगल न पावही ।

लाखों समभाव की अवस्थाएं भी उनकी स्थिरता की स्थिति तक नहीं पहुंच सकतीं, न ही लाखों स्तुति के सुखद गीत उनके द्वारा प्रदत्त सुख के आनंद को छू सकते हैं।

ਕੋਟਨ ਕੋਟਾਨ ਪਰਤਾਪ ਨ ਪ੍ਰਤਾਪ ਸਰ ਕੋਟਨ ਕੋਟਾਨ ਛਬਿ ਛਬਿ ਨ ਪੁਜਾਵਹੀ ।
कोटन कोटान परताप न प्रताप सर कोटन कोटान छबि छबि न पुजावही ।

करोड़ों ऐश्वर्य भी उनकी महिमा की बराबरी नहीं कर सकते और न ही करोड़ों अलंकरण उनके रूप तक पहुँच सकते हैं।

ਅਰਥ ਧਰਮ ਕਾਮ ਮੋਖ ਕੋਟਨਿ ਹੀ ਸਮ ਨਾਹਿ ਅਉਸਰ ਅਭੀਚ ਨਾਹ ਸਿਹਜ ਬੁਲਾਵਹੀ ।੬੫੧।
अरथ धरम काम मोख कोटनि ही सम नाहि अउसर अभीच नाह सिहज बुलावही ।६५१।

जिस पर प्रभु का नाम कृपा हो गई है और जिसे प्रभु के हृदय रूपी शयन-शय्या पर बुलाकर शुभ आमंत्रण का अवसर मिल गया है, उस पर करोड़ों चार इच्छित तत्व (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) नहीं पहुँच सकते। (६५१)