जैसे अपने बेटे के हाथ में साँप देखकर माँ चिल्लाती नहीं बल्कि बहुत शांति से उसे अपने पास बुलाती है।
जिस प्रकार एक चिकित्सक रोगी को उसकी बीमारी के बारे में विस्तार से नहीं बताता, बल्कि उसे सख्त एहतियात के साथ दवा देकर उसे स्वस्थ कर देता है।
जिस प्रकार शिक्षक अपने विद्यार्थी की गलती को दिल पर नहीं लेता, बल्कि उसे आवश्यक शिक्षा देकर उसकी अज्ञानता को दूर करता है।
इसी प्रकार सद्गुरु भी दुर्गुणग्रस्त शिष्य से कुछ नहीं कहते, बल्कि उसे सम्पूर्ण ज्ञान प्रदान करते हैं, उसे समझाते हैं और उसे कुशाग्र बुद्धि वाला बुद्धिमान व्यक्ति बना देते हैं। (356)