अनेक योनियों में भटकने के बाद मुझे मनुष्य रूप में गृहस्थ जीवन जीने का अवसर प्राप्त हुआ है। मुझे यह पंचतत्व का शरीर पुनः कब मिलेगा?
मुझे यह अमूल्य मानव जन्म पुनः कब मिलेगा? एक ऐसा जन्म जब मैं दर्शन, स्वाद, श्रवण आदि का आनन्द ले सकूँगा।
यह ज्ञान, चिंतन, ध्यान में एक होने तथा उस प्रेममय अमृत-रूपी नाम का आनंद लेने का अवसर है, जो सच्चे गुरु ने मुझे प्रदान किया है।
सच्चे गुरु का आज्ञाकारी सिख सांसारिक जीवन जीते हुए भी इस जन्म को सफल बनाने का प्रयास करता है। वह सच्चे गुरु द्वारा दिए गए अमृत-रूपी नाम का बार-बार आनंदपूर्वक पान करता है और इस प्रकार वह मुक्त हो जाता है।