जिस प्रकार दवा से घाव ठीक हो जाता है और दर्द भी मिट जाता है, परंतु घाव का निशान कभी मिटता नहीं दिखता।
जिस प्रकार एक फटे कपड़े को जब सिल दिया जाता है तो शरीर दिखाई नहीं देता, बल्कि सिलाई की सिलाई स्पष्ट दिखाई देती है।
जैसे एक टूटे हुए बर्तन को ताम्रकार द्वारा मरम्मत कर दिया जाता है और उसमें से पानी भी नहीं रिसता, बल्कि वह बर्तनों से ही मरम्मत हो जाता है।
इसी प्रकार जो शिष्य गुरु के पवित्र चरणों से विमुख हो जाता है, वह अपने कर्मों का दुःख अनुभव करने पर पुनः गुरु की शरण में आता है। यद्यपि वह अपने पापों से मुक्त होकर पवित्र हो जाता है, तथापि उसके धर्म-त्याग का कलंक बना रहता है। (419)