सर्वज्ञ तथा सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने स्वयं अपना स्वरूप रचा है तथा अपना नाम (गुरु) नानक रखा है।
दूसरा नाम जो उन्होंने स्वयं को कहा वह गोबिंद है। दिव्य भगवान ने प्रथम गुरु के रूप में प्रकट होने के लिए अन्तर्यामी रूप धारण किया।
भगवान स्वयं वेदों के उपदेश हैं और वे स्वयं ही उनमें निहित सभी रहस्यों को जानते हैं। भगवान ने स्वयं ही यह अद्भुत कार्य रचा है और अनेक रूपों और शरीरों में प्रकट हो रहे हैं
कपड़े के ताने-बाने की तरह गुरु और गोबिंद (ईश्वर) दोनों एक दूसरे से भिन्न नहीं हैं। (५४)