सबको समान रूप से देखने तथा भगवान को देखने का विचार मन में रखते हुए तथा मन से मैं, मेरा या मुझे का भाव त्यागकर, भगवान का आश्रय प्राप्त करो।
दूसरों की स्तुति-निन्दा छोड़कर, गुरु के दिव्य वचनों को मन में एक करने का प्रयत्न करना चाहिए, उसी में लीन होना चाहिए। उसका चिंतन वर्णन से परे है। इसलिए मौन रहना ही श्रेष्ठ है।
ईश्वर, सृष्टिकर्ता और ब्रह्मांड पर विचार करें- उनकी रचना एक ही है। और एक बार ईश्वर को इस प्रकार जान लिया जाए, तो व्यक्ति अनेक युगों तक जीवित रह सकता है।
यदि कोई यह समझ ले कि भगवान् का प्रकाश सब प्राणियों में व्याप्त है और सब प्राणियों का प्रकाश उसी में व्याप्त है, तो यह भगवान् का ज्ञान साधक को प्रेममय अमृत प्रदान करता है। (२५२)