जैसे आंखों के बिना चेहरा नहीं देखा जा सकता और कानों के बिना संगीत की ध्वनि नहीं सुनी जा सकती।
जैसे जीभ के बिना कोई शब्द नहीं बोला जा सकता और नाक के बिना कोई सुगंध नहीं सूँघी जा सकती।
जैसे हाथों के बिना कोई भी कार्य संभव नहीं है और पैरों के बिना किसी स्थान पर नहीं पहुंचा जा सकता।
जैसे भोजन और वस्त्र के बिना शरीर स्वस्थ नहीं रह सकता, वैसे ही सद्गुरु से प्राप्त शिक्षा और दिव्य वचनों के बिना भगवान के प्रेम रूपी अद्भुत अमृत का आनंद नहीं लिया जा सकता। (५३३)