कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 235


ਜੈਸੇ ਮਨੁ ਧਾਵੈ ਪਰ ਤਨ ਧਨ ਦੂਖਨਾ ਲਉ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰ ਸਰਨਿ ਸਾਧਸੰਗ ਲਉ ਨ ਆਵਈ ।
जैसे मनु धावै पर तन धन दूखना लउ स्री गुर सरनि साधसंग लउ न आवई ।

जैसे मन पराई स्त्री, पराया धन और पराई निन्दा के पीछे भागता है, वैसे ही वह सच्चे गुरु और सज्जनों की सभा की शरण में नहीं आता।

ਜੈਸੇ ਮਨੁ ਪਰਾਧੀਨ ਹੀਨ ਦੀਨਤਾ ਮੈ ਸਾਧਸੰਗ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵਾ ਨ ਲਗਾਵਈ ।
जैसे मनु पराधीन हीन दीनता मै साधसंग सतिगुर सेवा न लगावई ।

जिस प्रकार मन दूसरों की हीन, अनादरपूर्ण सेवा में लगा रहता है, उसी प्रकार वह सच्चे गुरु तथा साधु-समुदाय की भी सेवा नहीं करता।

ਜੈਸੇ ਮਨੁ ਕਿਰਤਿ ਬਿਰਤਿ ਮੈ ਮਗਨੁ ਹੋਇ ਸਾਧਸੰਗ ਕੀਰਤਨ ਮੈ ਨ ਠਹਿਰਾਵਈ ।
जैसे मनु किरति बिरति मै मगनु होइ साधसंग कीरतन मै न ठहिरावई ।

जिस प्रकार मन सांसारिक कार्यों में उलझा रहता है, उसी प्रकार वह ईश्वर की भक्ति तथा धार्मिक संगति में भी संलग्न नहीं होता।

ਕੂਕਰ ਜਿਉ ਚਉਚ ਕਾਢਿ ਚਾਕੀ ਚਾਟਿਬੇ ਕਉ ਜਾਇ ਜਾ ਕੇ ਮੀਠੀ ਲਾਗੀ ਦੇਖੈ ਤਾਹੀ ਪਾਛੈ ਧਾਵਈ ।੨੩੫।
कूकर जिउ चउच काढि चाकी चाटिबे कउ जाइ जा के मीठी लागी देखै ताही पाछै धावई ।२३५।

जैसे कुत्ता चक्की चाटने के लिए दौड़ता है, वैसे ही लोभी मनुष्य भी उसी के पीछे दौड़ता है, जिसके पास वह माया का मधुर लोभ देखता है। (235)