कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 410


ਜੈਸੇ ਤਉ ਮਿਠਾਈ ਰਾਖੀਐ ਛਿਪਾਇ ਜਤਨ ਕੈ ਚੀਟੀ ਚਲਿ ਜਾਇ ਚੀਨਿ ਤਾਹਿ ਲਪਟਾਤ ਹੈ ।
जैसे तउ मिठाई राखीऐ छिपाइ जतन कै चीटी चलि जाइ चीनि ताहि लपटात है ।

जिस प्रकार मिठाइयों को सावधानी से छिपाया जाता है, फिर भी चींटियाँ बिना किसी डर के उस तक पहुँच जाती हैं और उससे चिपक जाती हैं,

ਦੀਪਕ ਜਗਾਇ ਜੈਸੇ ਰਾਖੀਐ ਦੁਰਾਇ ਗ੍ਰਿਹਿ ਪ੍ਰਗਟ ਪਤੰਗ ਤਾ ਮੈ ਸਹਜਿ ਸਮਾਤਿ ਹੈ ।
दीपक जगाइ जैसे राखीऐ दुराइ ग्रिहि प्रगट पतंग ता मै सहजि समाति है ।

जिस प्रकार एक जलता हुआ दीपक घर में सावधानी से छिपा दिया जाता है, फिर भी एक पतंगा उसे ढूंढ़ लेता है और उसकी लौ में विलीन हो जाता है,

ਜੈਸੇ ਤਉ ਬਿਮਲ ਜਲ ਕਮਲ ਇਕਾਂਤ ਬਸੈ ਮਧੁਕਰ ਮਧੁ ਅਚਵਨ ਤਹ ਜਾਤ ਹੈ ।
जैसे तउ बिमल जल कमल इकांत बसै मधुकर मधु अचवन तह जात है ।

जिस प्रकार स्वच्छ एवं स्वच्छ जल का कमल पुष्प एकान्त स्थान पर खिलता है, किन्तु काली मधुमक्खी उसका रसपान करने के लिए सदैव उस तक पहुंच जाती है,

ਤੈਸੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਿਹ ਘਟ ਪ੍ਰਗਟਤ ਪ੍ਰੇਮ ਸਕਲ ਸੰਸਾਰੁ ਤਿਹਿ ਦੁਆਰ ਬਿਲਲਾਤ ਹੈ ।੪੧੦।
तैसे गुरमुखि जिह घट प्रगटत प्रेम सकल संसारु तिहि दुआर बिललात है ।४१०।

इसी प्रकार सच्चे गुरु का एक समर्पित शिष्य जिसका हृदय भगवान के प्रेम से प्रज्वलित हो जाता है, सारा संसार उसके द्वार पर विनती करता है और रोता है। (410)