जैसे एक बहू घर के बुजुर्गों के सामने तो घूंघट ओढ़ लेती है, लेकिन अपने पति के साथ बिस्तर पर सोते समय उनसे दूरी नहीं रखती;
जैसे साँप मादा साँप और उसके परिवार के साथ रहते हुए टेढ़ा रहता है, किन्तु बिल में प्रवेश करते ही सीधा हो जाता है;
जिस प्रकार एक बेटा अपने माता-पिता के सामने अपनी पत्नी से बात करने से कतराता है, लेकिन अकेले में उस पर अपना सारा प्यार लुटा देता है,
इसी प्रकार एक समर्पित सिख दूसरों के बीच सांसारिक प्रतीत होता है, लेकिन गुरु के वचन के साथ अपने मन को जोड़कर, वह आध्यात्मिक रूप से ऊपर उठता है और भगवान को प्राप्त करता है। सार: कोई व्यक्ति बाहरी रूप से खुद को सांसारिक व्यक्ति के रूप में रख सकता है, लेकिन आंतरिक रूप से वह खुद को सांसारिकता से जुड़ा रखता है।