जो सिख अपने गुरु की सेवा में रहता है, जिसका मन उनकी शिक्षाओं में लीन रहता है, जो प्रभु स्मरण का अभ्यास करता है, उसकी बुद्धि तीव्र और उच्च हो जाती है। इससे उसका मन और आत्मा गुरु के ज्ञान के प्रकाश से आलोकित हो जाती है।
गुरु के वचन को स्मृति में बसाकर, सबको एक समान देखकर तथा एक जैसा व्यवहार करके, वह अपनी आत्मा में दिव्य प्रकाश का अनुभव करता है। अपने मन को दिव्य वचन में लगाकर, वह निर्भय प्रभु के नाम सिमरन का अभ्यासी बन जाता है।
इस मिलन से गुरु-चेतना वाला व्यक्ति मुक्ति, सर्वोच्च आध्यात्मिक अवस्था प्राप्त करता है। फिर वह निरंतर आराम और शांति की स्थिति में रहता है और आनंदमय संतुलन की स्थिति में रहता है।
और उस दिव्य शब्द को स्मरण में धारण करके गुरु-चेतन व्यक्ति भगवान के प्रेम में रहता है। वह सदैव उस दिव्य अमृत का रसास्वादन करता है। तब उसके मन में भगवान के प्रति अद्भुत भक्ति उत्पन्न होती है। (६२)