कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 62


ਸਬਦ ਸੁਰਤਿ ਅਵਗਾਹਨ ਬਿਮਲ ਮਤਿ ਸਬਦ ਸੁਰਤਿ ਗੁਰ ਗਿਆਨ ਕੋ ਪ੍ਰਗਾਸ ਹੈ ।
सबद सुरति अवगाहन बिमल मति सबद सुरति गुर गिआन को प्रगास है ।

जो सिख अपने गुरु की सेवा में रहता है, जिसका मन उनकी शिक्षाओं में लीन रहता है, जो प्रभु स्मरण का अभ्यास करता है, उसकी बुद्धि तीव्र और उच्च हो जाती है। इससे उसका मन और आत्मा गुरु के ज्ञान के प्रकाश से आलोकित हो जाती है।

ਸਬਦ ਸੁਰਤਿ ਸਮ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਕੈ ਦਿਬਿ ਜੋਤਿ ਸਬਦ ਸੁਰਤਿ ਲਿਵ ਅਨਭੈ ਅਭਿਆਸ ਹੈ ।
सबद सुरति सम द्रिसटि कै दिबि जोति सबद सुरति लिव अनभै अभिआस है ।

गुरु के वचन को स्मृति में बसाकर, सबको एक समान देखकर तथा एक जैसा व्यवहार करके, वह अपनी आत्मा में दिव्य प्रकाश का अनुभव करता है। अपने मन को दिव्य वचन में लगाकर, वह निर्भय प्रभु के नाम सिमरन का अभ्यासी बन जाता है।

ਸਬਦ ਸੁਰਤਿ ਪਰਮਾਰਥ ਪਰਮਪਦ ਸਬਦ ਸੁਰਤਿ ਸੁਖ ਸਹਜ ਨਿਵਾਸ ਹੈ ।
सबद सुरति परमारथ परमपद सबद सुरति सुख सहज निवास है ।

इस मिलन से गुरु-चेतना वाला व्यक्ति मुक्ति, सर्वोच्च आध्यात्मिक अवस्था प्राप्त करता है। फिर वह निरंतर आराम और शांति की स्थिति में रहता है और आनंदमय संतुलन की स्थिति में रहता है।

ਸਬਦ ਸੁਰਤਿ ਲਿਵ ਪ੍ਰੇਮ ਰਸ ਰਸਿਕ ਹੁਇ ਸਬਦ ਸੁਰਤਿ ਲਿਵ ਬਿਸਮ ਬਿਸ੍ਵਾਸ ਹੈ ।੬੨।
सबद सुरति लिव प्रेम रस रसिक हुइ सबद सुरति लिव बिसम बिस्वास है ।६२।

और उस दिव्य शब्द को स्मरण में धारण करके गुरु-चेतन व्यक्ति भगवान के प्रेम में रहता है। वह सदैव उस दिव्य अमृत का रसास्वादन करता है। तब उसके मन में भगवान के प्रति अद्भुत भक्ति उत्पन्न होती है। (६२)