समुद्र मंथन से अमृत और विष दोनों निकले। एक ही सागर से निकलने के बावजूद, अमृत की अच्छाई और विष की हानि एक समान नहीं है।
विष रत्न-समान जीवन को समाप्त कर देता है, जबकि अमृत मृत को पुनर्जीवित कर अमर बना देता है।
चूंकि चाबी और ताला एक ही धातु से बने होते हैं, परंतु ताला बंधन उत्पन्न करता है, जबकि चाबी बंधनों को मुक्त करती है।
इसी प्रकार मनुष्य अपनी तुच्छ बुद्धि को नहीं छोड़ता, किन्तु ईश्वरीय स्वभाव वाला व्यक्ति गुरु की बुद्धि और शिक्षा से कभी विचलित नहीं होता। (162)