गुरु-प्रधान व्यक्ति का भौंरा-सा मन सच्चे गुरु के चरणों की अमृत-सी धूलि का ध्यान करके विचित्र सुख और शांति प्राप्त करता है।
भगवान के अमृत-समान नाम की विचित्र सुगंध और अत्यंत कोमल शांति के प्रभाव के कारण वह रहस्यमय दशम द्वार में ऐसी स्थिर अवस्था में रहता है कि फिर भटकता नहीं।
वह अविचल और अप्राप्य एकाग्रता के कारण, संतुलन की स्थिति में, निरन्तर नाम का मधुर नाम जपता रहता है।
जो परम प्रकाशवान और सब प्रकार से पूर्ण भगवान के नाम रूपी महान निधि को प्राप्त करके वह अन्य सब प्रकार के स्मरण, चिन्तन और सांसारिक चेतना को भूल जाता है। (२७१)