कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 423


ਚਾਹਿ ਚਾਹਿ ਚੰਦ੍ਰ ਮੁਖ ਚਾਇ ਕੈ ਚਕੋਰ ਚਖਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਕਿਰਨ ਅਚਵਤ ਨ ਅਘਾਨੇ ਹੈ ।
चाहि चाहि चंद्र मुख चाइ कै चकोर चखि अंम्रित किरन अचवत न अघाने है ।

जिस प्रकार चकोर चन्द्रमा को देखने के लिए लालायित रहता है, क्योंकि उसकी आंखें उसे देखती रहती हैं, तथा वह उसकी अमृतमयी किरणों को पीकर कभी तृप्त नहीं होता, उसी प्रकार गुरु का भक्त सिख भी सच्चे गुरु के दर्शन से कभी तृप्त नहीं होता।

ਸੁਨਿ ਸੁਨਿ ਅਨਹਦ ਸਬਦ ਸ੍ਰਵਨ ਮ੍ਰਿਗ ਅਨੰਦੁ ਉਦੋਤ ਕਰਿ ਸਾਂਤਿ ਨ ਸਮਾਨੇ ਹੈ ।
सुनि सुनि अनहद सबद स्रवन म्रिग अनंदु उदोत करि सांति न समाने है ।

जिस प्रकार घण्डा हेरहा नामक वाद्य की मधुर धुन सुनकर हिरण तृप्त हो जाता है, परन्तु उसे सुनकर कभी तृप्त नहीं होता, उसी प्रकार एक समर्पित सिख भी नाम अमृत की मधुर ध्वनि सुनकर कभी तृप्त नहीं होता।

ਰਸਕ ਰਸਾਲ ਜਸੁ ਜੰਪਤ ਬਾਸੁਰ ਨਿਸ ਚਾਤ੍ਰਕ ਜੁਗਤ ਜਿਹਬਾ ਨ ਤ੍ਰਿਪਤਾਨੇ ਹੈ ।
रसक रसाल जसु जंपत बासुर निस चात्रक जुगत जिहबा न त्रिपताने है ।

जिस प्रकार वर्षा का पक्षी दिन-रात स्वाति की अमृत बूँद के लिए रोते-रोते कभी नहीं थकता, उसी प्रकार गुरु के समर्पित और आज्ञाकारी शिष्य की जिह्वा भी भगवान के अमृतमय नाम का बार-बार उच्चारण करते कभी नहीं थकती।

ਦੇਖਤ ਸੁਨਤ ਅਰੁ ਗਾਵਤ ਪਾਵਤ ਸੁਖ ਪ੍ਰੇਮ ਰਸ ਬਸ ਮਨ ਮਗਨ ਹਿਰਾਨੇ ਹੈ ।੪੨੩।
देखत सुनत अरु गावत पावत सुख प्रेम रस बस मन मगन हिराने है ।४२३।

वह हिरण, बरसाती पक्षी की तरह सद्गुरु के दर्शन, मधुर ध्वनि सुनने तथा भगवान का गुणगान करने से जो अवर्णनीय दिव्य सुख प्राप्त करता है, उससे वह परमानंद में रहता है।