कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 404


ਜੈਸੇ ਚੀਟੀ ਕ੍ਰਮ ਕ੍ਰਮ ਕੈ ਬਿਰਖ ਚੜੈ ਪੰਛੀ ਉਡਿ ਜਾਇ ਬੈਸੇ ਨਿਕਟਿ ਹੀ ਫਲ ਕੈ ।
जैसे चीटी क्रम क्रम कै बिरख चड़ै पंछी उडि जाइ बैसे निकटि ही फल कै ।

जिस प्रकार एक चींटी फल तक पहुंचने के लिए पेड़ पर बहुत धीरे-धीरे रेंगती है, वहीं एक पक्षी उड़कर तुरंत उस तक पहुंच जाता है।

ਜੈਸੇ ਗਾਡੀ ਚਲੀ ਜਾਤਿ ਲੀਕਨ ਮਹਿ ਧੀਰਜ ਸੈ ਘੋਰੋ ਦਉਰਿ ਜਾਇ ਬਾਏ ਦਾਹਨੇ ਸਬਲ ਕੈ ।
जैसे गाडी चली जाति लीकन महि धीरज सै घोरो दउरि जाइ बाए दाहने सबल कै ।

जिस प्रकार रास्ते की खाइयों में चलती हुई बैलगाड़ी धीरे-धीरे अपने गंतव्य तक पहुंचती है, किन्तु रास्ते के दोनों ओर चलने वाला घोड़ा तेजी से चलता हुआ शीघ्र ही गंतव्य तक पहुंच जाता है।

ਜੈਸੇ ਕੋਸ ਭਰਿ ਚਲਿ ਸਕੀਐ ਨ ਪਾਇਨ ਕੈ ਆਤਮਾ ਚਤੁਰ ਕੁੰਟ ਧਾਇ ਆਵੈ ਪਲ ਕੈ ।
जैसे कोस भरि चलि सकीऐ न पाइन कै आतमा चतुर कुंट धाइ आवै पल कै ।

जिस प्रकार कोई व्यक्ति कुछ सेकण्ड में एक मील भी तय नहीं कर सकता, परन्तु हमारा मन एक ही सेकण्ड में चारों दिशाओं में घूम जाता है।

ਤੈਸੇ ਲੋਗ ਬੇਦ ਭੇਦ ਗਿਆਨ ਉਨਮਾਨ ਪਛ ਗੰਮ ਗੁਰ ਚਰਨ ਸਰਨ ਅਸਥਲ ਕੈ ।੪੦੪।
तैसे लोग बेद भेद गिआन उनमान पछ गंम गुर चरन सरन असथल कै ।४०४।

इसी प्रकार वेदों और सांसारिक विषयों का ज्ञान तर्क-वितर्क और विचार-विनिमय पर आधारित है। यह तरीका चींटी की चाल के समान है। लेकिन सच्चे गुरु की शरण में जाने से मनुष्य कुछ ही समय में भगवान के अचूक और स्थिर स्थानों पर पहुंच जाता है।