सच्चे गुरु के दर्शन में मन को तल्लीन करके गुरु का सच्चा सेवक शिष्य मन की स्थिरता प्राप्त करता है। गुरु के शब्दों की ध्वनि और नाम सिमरन से उसकी चिंतन और स्मरण शक्ति भी स्थिर हो जाती है।
अमृत रूपी नाम का रसास्वादन करने से उसकी जीभ को अन्य किसी वस्तु की इच्छा नहीं रहती। अपनी दीक्षा और गुरु के ज्ञान के कारण वह अपने जीवन के आध्यात्मिक पक्ष से जुड़ा रहता है।
नासिकाएँ गुरु के पवित्र चरणों की धूलि की सुगंध का आनंद लेती हैं। उनके पवित्र चरणों की कोमलता और शीतलता को स्पर्श करके तथा पवित्र चरणों को सिर से स्पर्श करके वह स्थिर और शांत हो जाता है।
सच्चे गुरु के मार्ग पर चलते हुए उसके पैर स्थिर हो जाते हैं। उसका अंग-अंग पवित्र हो जाता है और जैसे एक बूँद समुद्र के जल में मिल जाती है, वैसे ही वह सच्चे गुरु की सेवा में लीन हो जाता है। (278)