कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 278


ਦਰਸ ਧਿਆਨ ਲਿਵ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਅਚਲ ਭਈ ਸਬਦ ਬਿਬੇਕ ਸ੍ਰੁਤਿ ਸ੍ਰਵਨ ਅਚਲ ਹੈ ।
दरस धिआन लिव द्रिसटि अचल भई सबद बिबेक स्रुति स्रवन अचल है ।

सच्चे गुरु के दर्शन में मन को तल्लीन करके गुरु का सच्चा सेवक शिष्य मन की स्थिरता प्राप्त करता है। गुरु के शब्दों की ध्वनि और नाम सिमरन से उसकी चिंतन और स्मरण शक्ति भी स्थिर हो जाती है।

ਸਿਮਰਨ ਮਾਤ੍ਰ ਸੁਧਾ ਜਿਹਬਾ ਅਚਲ ਭਈ ਗੁਰਮਤਿ ਅਚਲ ਉਨਮਨ ਅਸਥਲ ਹੈ ।
सिमरन मात्र सुधा जिहबा अचल भई गुरमति अचल उनमन असथल है ।

अमृत रूपी नाम का रसास्वादन करने से उसकी जीभ को अन्य किसी वस्तु की इच्छा नहीं रहती। अपनी दीक्षा और गुरु के ज्ञान के कारण वह अपने जीवन के आध्यात्मिक पक्ष से जुड़ा रहता है।

ਨਾਸਕਾ ਸੁਬਾਸੁ ਕਰ ਕੋਮਲ ਸੀਤਲਤਾ ਕੈ ਪੂਜਾ ਪਰਨਾਮ ਪਰਸ ਚਰਨ ਕਮਲ ਹੈ ।
नासका सुबासु कर कोमल सीतलता कै पूजा परनाम परस चरन कमल है ।

नासिकाएँ गुरु के पवित्र चरणों की धूलि की सुगंध का आनंद लेती हैं। उनके पवित्र चरणों की कोमलता और शीतलता को स्पर्श करके तथा पवित्र चरणों को सिर से स्पर्श करके वह स्थिर और शांत हो जाता है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਪੰਥ ਚਰ ਅਚਰ ਹੁਇ ਅੰਗ ਅੰਗ ਪੰਗ ਸਰਬੰਗ ਬੂੰਦ ਸਾਗਰ ਸਲਿਲ ਹੈ ।੨੭੮।
गुरमुखि पंथ चर अचर हुइ अंग अंग पंग सरबंग बूंद सागर सलिल है ।२७८।

सच्चे गुरु के मार्ग पर चलते हुए उसके पैर स्थिर हो जाते हैं। उसका अंग-अंग पवित्र हो जाता है और जैसे एक बूँद समुद्र के जल में मिल जाती है, वैसे ही वह सच्चे गुरु की सेवा में लीन हो जाता है। (278)