कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 493


ਪ੍ਰੀਤਿ ਭਾਇ ਪੇਖੈ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਚਕਈ ਜਿਉਂ ਨਿਸ ਗੁਰਮਤਿ ਆਪਾ ਆਪ ਚੀਨ ਪਹਿਚਾਨੀਐ ।
प्रीति भाइ पेखै प्रतिबिंब चकई जिउं निस गुरमति आपा आप चीन पहिचानीऐ ।

जिस प्रकार रूडी शेल्ड्रेक चांदनी रातों में अपनी छाया को प्रेमपूर्ण दृष्टि से देखता है और मानता है कि वह उसका प्रियतम है, उसी प्रकार गुरु का अनुयायी सिख अपने भीतर अपने प्रिय भगवान के अस्तित्व को पहचानता है और उसमें लीन हो जाता है।

ਬੈਰ ਭਾਇ ਪੇਖਿ ਪਰਛਾਈ ਕੂਪੰਤਰਿ ਪਰੈ ਸਿੰਘੁ ਦੁਰਮਤਿ ਲਗਿ ਦੁਬਿਧਾ ਕੈ ਜਾਨੀਐ ।
बैर भाइ पेखि परछाई कूपंतरि परै सिंघु दुरमति लगि दुबिधा कै जानीऐ ।

जैसे सिंह कुएँ में अपनी छाया देखकर ईर्ष्या के वश होकर उसे दूसरा सिंह समझकर उस पर झपट पड़ता है, उसी प्रकार अपनी तुच्छ बुद्धि के कारण गुरु से विमुख हुआ मनमुख भी संशय में उलझा हुआ दिखाई देता है।

ਗਊ ਸੁਤ ਅਨੇਕ ਏਕ ਸੰਗ ਹਿਲਿ ਮਿਲਿ ਰਹੈ ਸ੍ਵਾਨ ਆਨ ਦੇਖਤ ਬਿਰੁਧ ਜੁਧ ਠਾਨੀਐ ।
गऊ सुत अनेक एक संग हिलि मिलि रहै स्वान आन देखत बिरुध जुध ठानीऐ ।

जिस प्रकार गाय के अनेक बछड़े आपस में मिलजुलकर रहते हैं, उसी प्रकार गुरु के आज्ञाकारी पुत्र (सिख) आपस में प्रेम और भाईचारे से रहते हैं। परन्तु कुत्ता दूसरे कुत्ते को बर्दाश्त नहीं कर सकता और उससे लड़ता है। (ऐसे ही स्वेच्छाचारी व्यक्ति आपस में झगड़ने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।)

ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਨਮੁਖ ਚੰਦਨ ਅਉ ਬਾਂਸ ਬਿਧਿ ਬਰਨ ਕੇ ਦੋਖੀ ਬਿਕਾਰੀ ਉਪਕਾਰੀ ਉਨਮਾਨੀਐ ।੪੯੩।
गुरमुखि मनमुख चंदन अउ बांस बिधि बरन के दोखी बिकारी उपकारी उनमानीऐ ।४९३।

गुरु-चेतन और आत्म-चेतन व्यक्तियों का आचरण चंदन और बांस के समान होता है। दुष्ट व्यक्ति दूसरों से लड़कर स्वयं को नष्ट कर लेते हैं, जैसे बांस स्वयं को आग लगा लेते हैं। इसके विपरीत, पुण्यात्मा व्यक्ति अपने साथियों का भला करते देखे जाते हैं।