सच्चे गुरु का आज्ञाकारी सिख दिव्य रूप और रंग वाला हो जाता है। उसके शरीर का हर अंग गुरु की चमक बिखेरता है। वह सभी बाहरी पूजा-अर्चना से मुक्त हो जाता है। वह दिव्य गुणों को प्राप्त करता है और सांसारिक विशेषताओं को त्याग देता है।
सच्चे गुरु की एक झलक पाकर वह एकरूप आचरण वाला और सर्वज्ञ हो जाता है। गुरु के वचनों को मन से मिलाकर वह भगवान का चिंतक बन जाता है।
सच्चे गुरु की शिक्षा प्राप्त करके उसे हृदय में बसा लेने से वह अपने जीवन के सभी लेखा-जोखा देने से मुक्त हो जाता है। सच्चे गुरु की शरण में आकर वह विकारों से मुक्त होकर कल्याणकारी बन जाता है।
जो गुरु शिष्य पूर्ण ईश्वर तुल्य सच्चे गुरु का आज्ञाकारी बन जाता है और सदैव उनकी सेवा में रहता है, वह सभी देवताओं द्वारा आदरणीय और बली होता है, क्योंकि उसने अपने सच्चे गुरु पर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया है। (260)