जिस प्रकार स्वच्छ दर्पण में कोई छवि नहीं होती, किन्तु जब कोई उसमें देखता है, तो वह सभी विवरणों को उनके वास्तविक रंग में दिखाता है,
जिस प्रकार स्वच्छ जल में सभी प्रकार के रंग नहीं होते, परन्तु वह जिस रंग में मिल जाता है, उसी रंग को प्राप्त कर लेता है।
जिस प्रकार पृथ्वी सभी स्वादों और इच्छाओं से मुक्त है, तथापि वह विभिन्न प्रभावों वाली असंख्य जड़ी-बूटियाँ, अनेक प्रकार के औषधीय और सुगंधित अर्क देने वाले पौधे उत्पन्न करती है,
इसी प्रकार जो जिस भावना से अनिर्वचनीय और अगम्य प्रभु-समान सच्चे गुरु की सेवा करता है, उसकी इच्छाएँ उसी प्रकार पूरी होती हैं। (330)