जिस प्रकार एक माँ अपने बेटे की अनेक शरारतों को नजरअंदाज कर देती है तथा उसे प्यार और देखभाल के साथ बड़ा करती है।
जिस प्रकार एक योद्धा अपनी शरण में आये हुए के प्रति अपनी प्रतिज्ञा का पालन करता है तथा उसके अनादर करने पर भी उसका वध नहीं करता।
जिस प्रकार लकड़ी का एक लट्ठा नदी में नहीं डूबता, क्योंकि उसमें यह छिपा हुआ सम्मान होता है कि उसने (नदी ने) पेड़ को जीवनदायी जल प्रदान करके उसे बढ़ने में मदद की है।
ऐसे ही महान उपकारक सच्चे गुरु हैं जो पारस पत्थर की तरह सिखों को सोने के समान धातु में बदल देने में समर्थ हैं। वे उनके पूर्व कर्मों पर ध्यान नहीं देते तथा उन्हें नाम सिमरन का आशीर्वाद देकर अपने समान गुणवान बना देते हैं। (379)