कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 547


ਪਰ ਤ੍ਰਿਅ ਦੀਰਘ ਸਮਾਨਿ ਲਘੁ ਜਾਵਦੇਕ ਜਨਨੀ ਭਗਨੀ ਸੁਤਾ ਰੂਪ ਕੈ ਨਿਹਾਰੀਐ ।
पर त्रिअ दीरघ समानि लघु जावदेक जननी भगनी सुता रूप कै निहारीऐ ।

जहाँ तक अन्य स्त्रियों का प्रश्न है, अपने से बड़ी को माता, अपनी आयु की स्त्री को बहन तथा अपने से छोटी को पुत्री समझो।

ਪਰ ਦਰਬਾਸਹਿ ਗਊ ਮਾਸ ਤੁਲਿ ਜਾਨਿ ਰਿਦੈ ਕੀਜੈ ਨ ਸਪਰਸੁ ਅਪਰਸ ਸਿਧਾਰੀਐ ।
पर दरबासहि गऊ मास तुलि जानि रिदै कीजै न सपरसु अपरस सिधारीऐ ।

दूसरे के धन की इच्छा को गोमांस के समान समझो जिसे छुआ नहीं जाना चाहिए, और उससे दूर रहो।

ਘਟਿ ਘਟਿ ਪੂਰਨ ਬ੍ਰਹਮ ਜੋਤਿ ਓਤਿ ਪੋਤਿ ਅਵਗੁਨੁ ਗੁਨ ਕਾਹੂ ਕੋ ਨ ਬੀਚਾਰੀਐ ।
घटि घटि पूरन ब्रहम जोति ओति पोति अवगुनु गुन काहू को न बीचारीऐ ।

प्रत्येक शरीर में ताने-बाने की भाँति विराजमान पूर्ण प्रभु के तेज को समझो और किसी के गुण-दोष पर ध्यान मत दो।

ਗੁਰ ਉਪਦੇਸ ਮਨ ਧਾਵਤ ਬਰਜਿ ਪਰ ਧਨ ਪਰ ਤਨ ਪਰ ਦੂਖ ਨ ਨਿਵਾਰੀਐ ।੫੪੭।
गुर उपदेस मन धावत बरजि पर धन पर तन पर दूख न निवारीऐ ।५४७।

सच्चे गुरु के उपदेश से मन को दसों दिशाओं में भटकने से रोको तथा उसे पराई स्त्री, पराया धन और परनिन्दा से दूर रखो। (547)