जैसे पत्थर सदियों तक पानी में रहता है, फिर भी वह कभी नरम नहीं पड़ता क्योंकि वह कठोर होता है। अपने घनत्व और ठोस द्रव्यमान के कारण वह डूब जाता है;
जिस प्रकार तुम्मा का कड़वापन अड़सठ तीर्थस्थानों पर भीतर-बाहर से धोने पर भी नहीं जाता।
जैसे साँप जीवन भर चंदन के वृक्ष के तने में उलझा रहता है, किन्तु अपनी आयु के अभिमान के कारण वह अपना विष नहीं छोड़ता;
इसी प्रकार जो मनुष्य मन से निकृष्ट और मिथ्या है, उसका प्रेम कपटपूर्ण और संदिग्ध है। उसका संसार में रहना व्यर्थ और निष्फल है। वह महात्माओं और गुरुओं की निन्दा करने वाला है और अपने-अपने स्वार्थ के कारण पाप और दुर्गुणों के जाल में फंसा हुआ है।