गुरु-चेतन सिख अमृत-रूपी नाम का प्रेममय अमृत पीकर पूर्ण तृप्त महसूस करता है। वह अपने भीतर आध्यात्मिक परमानंद की विचित्र और आश्चर्यजनक तरंगों का अनुभव करता है।
प्रेममय अमृत का रसपान करके गुरु-चेतन व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को सांसारिक मोह-माया से हटाकर उन शक्तियों से जोड़ देता है जो उसे दिव्य सुखों का आनंद लेने में सहायक होती हैं। फलस्वरूप उसे अपने भीतर विचित्र और आश्चर्यजनक अनुभूतियाँ होती हैं।
जो कुछ वह स्वयं अनुभव करता है, वह दूसरों को अनुभव नहीं करा सकता। जो संगीत वह स्वयं सुनता है, वह दूसरों को कैसे सुना सकता है? जो नाम-अमृत का स्वाद वह स्वयं लेता है, उसका वर्णन वह दूसरों को कैसे कर सकता है? यह सब केवल वही भोग सकता है।
ऐसे व्यक्ति की आत्मिक प्रसन्नता की स्थिति का वर्णन करना असंभव है। इस अवस्था की प्रसन्नता में उसके शरीर का हर अंग स्थिर हो जाता है और वह स्तब्ध हो जाता है। ऐसा व्यक्ति सद्गुरु के पवित्र चरणों में रहकर ईश्वर रूपी सागर में लीन हो जाता है