नाम-अमृत का स्वाद लिए बिना, बेस्वाद जीभ बहुत कुछ बकवास बोलती है। इसके विपरीत, बार-बार नाम जपने से, भक्त की जीभ मीठी और स्वभाव सुखद हो जाता है।
अमृत रूपी नाम का पान करने से भक्त आनंद की अवस्था में रहता है। वह अपने अंदर देखने लगता है और किसी अन्य पर निर्भर नहीं रहता।
नाम-पथ पर चलने वाला श्रद्धालु व्यक्ति सदैव संतुलन की स्थिति में रहता है और दिव्य शब्द-संगीत की दिव्य धुन में लीन रहता है। उसके कानों में कोई अन्य ध्वनि सुनाई नहीं देती।
और इस आनंदमय अवस्था में वह शरीर से मुक्त होकर भी जीवित रहता है। वह सभी सांसारिक चीजों से मुक्त हो जाता है और जीवित रहते हुए भी मुक्त हो जाता है। वह तीनों लोकों और तीनों कालों की घटनाओं को जानने में सक्षम हो जाता है। (६५)