स्वार्थी और नीच व्यक्ति धन खर्च करके दुर्गुण, दुःख और अपकीर्ति प्राप्त करता है। वह इस लोक और परलोक में भी कलंक लगाता है।
चोर, अनैतिक व्यक्ति, जुआरी और नशेड़ी अपने नीच और कुख्यात कर्मों के कारण सदैव किसी न किसी कलह या विवाद में लिप्त रहते हैं।
ऐसा दुष्ट व्यक्ति अपनी बुद्धि, मान, प्रतिष्ठा और यश खो देता है, तथा नाक या कान कटने की सजा भुगतने के बाद भी समाज में कलंक लगने के बावजूद उसे कोई शर्म महसूस नहीं होती। वह और अधिक निर्लज्ज होकर अपने कुकृत्यों में लिप्त रहता है।
जब ऐसे कुकर्मी और बदनाम लोग बुरे कर्म करने से नहीं बचते, तो फिर गुरु का सिख क्यों न उस सच्चे और महात्माओं की संगत में आए, जो सब निधियों से नवाजने में समर्थ है? (यदि उन्हें ऐसा करने में शर्म नहीं आती)