चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद हमें यह मानव जन्म मिला है। यदि हम इस अवसर को चूक गए तो यह हमें कब मिलेगा और संतों की संगति का आनंद कब मिलेगा? इसलिए हमें पवित्र समागम दिवस पर अवश्य जाना चाहिए
मुझे कब सच्चे गुरु के साक्षात् दर्शन होंगे और उनकी कृपा प्राप्त होगी? इसलिए मुझे अपना मन भगवान की प्रेममयी पूजा और भक्ति में लगाना चाहिए।
मुझे कब ऐसा अवसर मिलेगा कि मैं सच्चे गुरु की दिव्य रचनाओं को वाद्यों के साथ तथा शास्त्रीय गायन के साथ सुन सकूँ? इसलिए मुझे उनके गुणगान सुनने तथा गाने के लिए सभी संभव अवसर ढूँढ़ने चाहिए।
मुझे कब मौका मिलेगा कि मैं कागज रूपी मन पर चेतना रूपी स्याही से प्रभु का नाम लिख सकूँ? इसलिए मुझे कागज रूपी हृदय पर गुरु कृपापूर्ण शब्द लिखना चाहिए और (निरंतर ध्यान के माध्यम से) आत्म-साक्षात्कार तक पहुँचना चाहिए। (500)