उनके गूढ़ तत्वज्ञान और उपदेश को समझना अत्यंत अथाह और समझ से परे की बात है। अविनाशी भगवान की तरह यह भी पारलौकिक, अनंत और बार-बार वंदन करने योग्य है।
उनके दर्शन में मन को एकाग्र करके तथा नाम सिमरन में मन को लगाकर, मनुष्य अपने द्वारा निर्मित सम्पूर्ण विस्तार में सर्वव्यापी प्रभु का साक्षात्कार कर सकता है।
एक दिव्य प्रभु असंख्य रूपों में प्रकट हो रहे हैं। फूलों की क्यारी की सुगंध की तरह, उन्हें, जो दुर्गम हैं, महसूस किया जा सकता है।
सच्चे गुरु का उपदेश और दर्शन अत्यंत प्रशंसनीय है। वह अत्यंत आश्चर्यजनक और वर्णन से परे है। वह समझ से परे और विचित्र से भी विचित्र है। (८१)