जिस प्रकार एक अच्छे घराने की बुद्धिमान बहू अपने ससुराल में सबके साथ ध्यानपूर्वक, सचेतनतापूर्वक तथा शालीनता से व्यवहार करती है;
यह समझते हुए कि यह उसके पति का परिवार है, वह अपने ससुर, देवर और परिवार के अन्य सदस्यों के भोजन और अन्य सभी जरूरतों का परिश्रम और सम्मानपूर्वक ख्याल रखती है;
वह परिवार के सभी बड़ों से आदरपूर्वक, विनम्रतापूर्वक और विनम्रता से बात करती है। इसी तरह सच्चे गुरु का एक समर्पित शिष्य सभी मनुष्यों के प्रति सम्मान रखने में माहिर होता है।
परन्तु अपने अन्दर वह ईश्वर रूपी सच्चे गुरु के दिव्य दर्शन पर केन्द्रित रहता है। (भाई गुरदास जी के अनुसार गुरु के वचनों पर अभ्यास करना तथा सच्चे गुरु द्वारा दिए गए प्रभु के नाम का ध्यान करना ही सच्चे गुरु के दर्शन का चिंतन है।) (395)