मेरे हृदय में अपने प्रियतम प्रभु से मिलने की उत्कट अभिलाषा से मेरी आंखें, होंठ और भुजाएं कांप रही हैं। मेरे शरीर का तापमान बढ़ रहा है और मन बेचैन है। मेरे प्रियतम मेरे हृदयरूपी घर में कब निवास करने आएंगे?
कब मेरी आँखें और शब्द (होंठ) मेरे प्रभु की आँखों और शब्दों (होंठों) से मिलेंगे? और कब मेरे प्यारे प्रभु मुझे रात में अपने बिस्तर पर बुलाएँगे ताकि मुझे इस मिलन का दिव्य आनंद मिल सके?
वह कब मेरा हाथ थामेंगे, मुझे अपने आलिंगन में, अपनी गोद में, अपने गले में लेंगे और मुझे आध्यात्मिक आनन्द में डुबा देंगे?
हे मेरे बन्धुओ! प्रियतम प्रभु कब मुझे आत्मिक मिलन का प्रेममय अमृत पिलाकर तृप्त करेंगे, तथा वे तेजस्वी एवं दयालु प्रभु कब मुझ पर कृपा करके मेरे मन की इच्छा को पूर्ण करेंगे? (६६५)