कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 665


ਫਰਕਤ ਲੋਚਨ ਅਧਰ ਪੁਜਾ ਤਾਪੈ ਤਨ ਮਨ ਮੈ ਅਉਸੇਰ ਕਬ ਲਾਲ ਗ੍ਰਿਹ ਆਵਈ ।
फरकत लोचन अधर पुजा तापै तन मन मै अउसेर कब लाल ग्रिह आवई ।

मेरे हृदय में अपने प्रियतम प्रभु से मिलने की उत्कट अभिलाषा से मेरी आंखें, होंठ और भुजाएं कांप रही हैं। मेरे शरीर का तापमान बढ़ रहा है और मन बेचैन है। मेरे प्रियतम मेरे हृदयरूपी घर में कब निवास करने आएंगे?

ਨੈਨਨ ਸੈ ਨੈਨ ਅਰ ਬੈਨਨ ਸੇ ਬੈਨ ਮਿਲੈ ਰੈਨ ਸਮੈ ਚੈਨ ਕੋ ਸਿਹਜਾਸਨ ਬੁਲਾਵਹੀ ।
नैनन सै नैन अर बैनन से बैन मिलै रैन समै चैन को सिहजासन बुलावही ।

कब मेरी आँखें और शब्द (होंठ) मेरे प्रभु की आँखों और शब्दों (होंठों) से मिलेंगे? और कब मेरे प्यारे प्रभु मुझे रात में अपने बिस्तर पर बुलाएँगे ताकि मुझे इस मिलन का दिव्य आनंद मिल सके?

ਕਰ ਗਹਿ ਕਰ ਉਰ ਉਰ ਸੈ ਲਗਾਇ ਪੁਨ ਅੰਕ ਅੰਕਮਾਲ ਕਰਿ ਸਹਿਜ ਸਮਾਵਹੀ ।
कर गहि कर उर उर सै लगाइ पुन अंक अंकमाल करि सहिज समावही ।

वह कब मेरा हाथ थामेंगे, मुझे अपने आलिंगन में, अपनी गोद में, अपने गले में लेंगे और मुझे आध्यात्मिक आनन्द में डुबा देंगे?

ਪ੍ਰੇਮ ਰਸ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਪੀਆਇ ਤ੍ਰਿਪਤਾਇ ਆਲੀ ਦਯਾ ਕੈ ਦਯਾਲ ਦੇਵ ਕਾਮਨਾ ਪੁਜਾਵਹੀ ।੬੬੫।
प्रेम रस अंम्रित पीआइ त्रिपताइ आली दया कै दयाल देव कामना पुजावही ।६६५।

हे मेरे बन्धुओ! प्रियतम प्रभु कब मुझे आत्मिक मिलन का प्रेममय अमृत पिलाकर तृप्त करेंगे, तथा वे तेजस्वी एवं दयालु प्रभु कब मुझ पर कृपा करके मेरे मन की इच्छा को पूर्ण करेंगे? (६६५)