कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 335


ਹਉਮੈ ਅਭਿਮਾਨ ਅਸਥਾਨ ਤਜਿ ਬੰਝ ਬਨ ਚਰਨ ਕਮਲ ਗੁਰ ਸੰਪਟ ਸਮਾਇ ਹੈ ।
हउमै अभिमान असथान तजि बंझ बन चरन कमल गुर संपट समाइ है ।

जो गुरु-प्रधान व्यक्ति साधु-संग में आसक्त रहता है, उसका मन काली मधुमक्खी के समान होता है, वह बांसों के जंगल के समान अहंकार और अभिमान को त्याग देता है। वह आसक्ति और मोह को त्याग देता है। सच्चे गुरु के चरण-कमलों में आसक्त होकर,

ਅਤਿ ਹੀ ਅਨੂਪ ਰੂਪ ਹੇਰਤ ਹਿਰਾਨੇ ਦ੍ਰਿਗ ਅਨਹਦ ਗੁੰਜਤ ਸ੍ਰਵਨ ਹੂ ਸਿਰਾਏ ਹੈ ।
अति ही अनूप रूप हेरत हिराने द्रिग अनहद गुंजत स्रवन हू सिराए है ।

सच्चे गुरु के अत्यंत सुन्दर रूप को देखकर उसकी आंखें चकित हो जाती हैं। गुरु के मनभावन और मनमोहक शब्दों को सुनकर उसके कान शांत और स्थिर हो जाते हैं।

ਰਸਨਾ ਬਿਸਮ ਅਤਿ ਮਧੁ ਮਕਰੰਦ ਰਸ ਨਾਸਿਕਾ ਚਕਤ ਹੀ ਸੁਬਾਸੁ ਮਹਕਾਏ ਹੈ ।
रसना बिसम अति मधु मकरंद रस नासिका चकत ही सुबासु महकाए है ।

सच्चे गुरु के चरणों की अमृत-सी मधुर धूलि का रसास्वादन करके जिह्वा को विचित्र आनन्द और सुख मिलता है। सच्चे गुरु की उस धूलि की मधुर सुगंध से नासिकाएँ चकित हो जाती हैं।

ਕੋਮਲਤਾ ਸੀਤਲਤਾ ਪੰਗ ਸਰਬੰਗ ਭਏ ਮਨ ਮਧੁਕਰ ਪੁਨਿ ਅਨਤ ਨਾ ਧਾਏ ਹੈ ।੩੩੫।
कोमलता सीतलता पंग सरबंग भए मन मधुकर पुनि अनत ना धाए है ।३३५।

सच्चे गुरु के पवित्र चरणों की मधुर गंध की शांति और कोमलता का अनुभव करके, शरीर के सभी अंग स्थिर हो जाते हैं। फिर मन रूपी काली मधुमक्खी कहीं और नहीं भटकती और कमल जैसे चरणों में ही लगी रहती है। (335)