मेरे प्रियतम की उपस्थिति के बिना, ये सभी आरामदायक बिस्तर, महल और अन्य रंग-बिरंगे रूप मृत्यु के देवदूतों/राक्षसों की तरह डरावने लगते हैं।
भगवान के बिना गायन की सभी विधाएँ, उनकी धुनें, संगीत के वाद्य तथा ज्ञान फैलाने वाली अन्य घटनाएँ शरीर को उसी प्रकार स्पर्श करती हैं, जैसे तीखे बाण हृदय को छेदते हैं।
प्रियतम के बिना सभी स्वादिष्ट व्यंजन, सुखदायक शय्याएं तथा अन्य नाना प्रकार के सुख विष और भयंकर अग्नि के समान लगते हैं।
जिस प्रकार मछली का अपने प्रिय जल के साथ रहने के अतिरिक्त और कोई उद्देश्य नहीं है, उसी प्रकार मेरा भी अपने प्रिय प्रभु के साथ रहने के अतिरिक्त और कोई उद्देश्य नहीं है। (५७४)