कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 206


ਦੇਖਬੇ ਕਉ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਨ ਦਰਸ ਦਿਖਾਇਬੇ ਕਉ ਕੈਸੇ ਪ੍ਰਿਅ ਦਰਸਨੁ ਦੇਖੀਐ ਦਿਖਾਈਐ ।
देखबे कउ द्रिसटि न दरस दिखाइबे कउ कैसे प्रिअ दरसनु देखीऐ दिखाईऐ ।

मेरे पास न तो अपने अनन्य, तेजस्वी और प्रियतम प्रेमी के दर्शन करने के लिए ज्ञानमय नेत्र हैं और न ही किसी को उसका दर्शन कराने की शक्ति ही है। फिर प्रेमी का दर्शन या दर्शन कैसे हो सकता है?

ਕਹਿਬੇ ਕਉ ਸੁਰਤਿ ਹੈ ਨ ਸ੍ਰਵਨ ਸੁਨਬੇ ਕਉ ਕੈਸੇ ਗੁਨਨਿਧਿ ਗੁਨ ਸੁਨੀਐ ਸੁਨਾਈਐ ।
कहिबे कउ सुरति है न स्रवन सुनबे कउ कैसे गुननिधि गुन सुनीऐ सुनाईऐ ।

मुझमें इतनी बुद्धि नहीं है कि मैं अपने प्रियतम के गुणों का वर्णन कर सकूँ, जो सद्गुणों का भण्डार है। न ही मेरे पास उनके गुणगान सुनने के लिए कान हैं। फिर हम गुणों और श्रेष्ठताओं के स्रोत की प्रशंसा कैसे सुनें और सुनाएँ?

ਮਨ ਮੈ ਨ ਗੁਰਮਤਿ ਗੁਰਮਤਿ ਮੈ ਨ ਮਨ ਨਿਹਚਲ ਹੁਇ ਨ ਉਨਮਨ ਲਿਵ ਲਾਈਐ ।
मन मै न गुरमति गुरमति मै न मन निहचल हुइ न उनमन लिव लाईऐ ।

मन न तो सच्चे गुरु की शिक्षाओं में रमता है, न ही गुरु के उपदेशों में लीन होता है। गुरु के वचनों में मन स्थिर नहीं होता। फिर उच्च आध्यात्मिक अवस्था में लीन कैसे हो सकता है?

ਅੰਗ ਅੰਗ ਭੰਗ ਰੰਗ ਰੂਪ ਕੁਲ ਹੀਨ ਦੀਨ ਕੈਸੇ ਬਹੁਨਾਇਕ ਕੀ ਨਾਇਕਾ ਕਹਾਈਐ ।੨੦੬।
अंग अंग भंग रंग रूप कुल हीन दीन कैसे बहुनाइक की नाइका कहाईऐ ।२०६।

मेरा सारा शरीर दुख रहा है। मुझ दीन और सम्मानहीन में न तो सुंदरता है, न ही उच्च कुल। फिर मैं अपने स्वामी भगवान का सबसे प्रिय प्रेम कैसे बन सकता हूँ और कैसे जाना जा सकता हूँ? (206)