पूर्ण गुरु, पूर्ण प्रभु का स्वरूप, दयालु होकर शिष्य के हृदय में सच्चा उपदेश स्थापित कर देते हैं, जिससे उसकी बुद्धि स्थिर हो जाती है और वह भटकने से बच जाता है।
शब्द में लीन होकर उसकी स्थिति उस मछली की तरह हो जाती है जो अपने आस-पास के वातावरण का आनंद ले रही होती है। तब उसे सभी में ईश्वर की उपस्थिति का एहसास होता है, जैसे वसा सभी दूध में मौजूद होती है।
ईश्वर, सच्चा गुरु उस सिख के हृदय में निवास करता है जो हमेशा गुरु के वचन में लीन रहता है। वह हर जगह प्रभु की उपस्थिति को देखता है। वह अपने कानों से उसे सुनता है, अपनी नाक से उसकी उपस्थिति की मधुर गंध का आनंद लेता है, और उसके नाम का आनंद लेता है।
सनातन स्वरूप सच्चे गुरु ने यह ज्ञान दिया है कि जैसे बीज वृक्ष, पौधे, शाखा, पुष्प आदि में निवास करता है, वैसे ही एक पूर्ण और सर्वज्ञ ईश्वर सबमें व्याप्त है। (276)