कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 349


ਕੰਚਨ ਅਸੁਧ ਜੈਸੇ ਭ੍ਰਮਤ ਕੁਠਾਰੀ ਬਿਖੈ ਸੁਧ ਭਏ ਭ੍ਰਮਤ ਨ ਪਾਵਕ ਪ੍ਰਗਾਸ ਹੈ ।
कंचन असुध जैसे भ्रमत कुठारी बिखै सुध भए भ्रमत न पावक प्रगास है ।

जैसे अशुद्ध सोना जब कुठार में तपाया जाता है तो इधर-उधर घूमता रहता है, परन्तु शुद्ध होने पर स्थिर हो जाता है और अग्नि के समान चमकने लगता है।

ਜੈਸੇ ਕਰ ਕੰਕਨ ਅਨੇਕ ਮੈ ਪ੍ਰਗਟ ਧੁਨਿ ਏਕੈ ਏਕ ਟੇਕ ਪੁਨਿ ਧੁਨਿ ਕੋ ਬਿਨਾਸ ਹੈ ।
जैसे कर कंकन अनेक मै प्रगट धुनि एकै एक टेक पुनि धुनि को बिनास है ।

यदि एक हाथ में कई चूड़ियाँ पहनी जाएं तो वे आपस में टकराकर आवाज करती रहती हैं, लेकिन जब उन्हें पिघलाकर एक कर दिया जाता है तो वे शांत और ध्वनिरहित हो जाती हैं।

ਖੁਧਿਆ ਕੈ ਬਾਲਕ ਬਿਲਲਾਤ ਅਕੁਲਾਤ ਅਤ ਅਸਥਨ ਪਾਨ ਕਰਿ ਸਹਜਿ ਨਿਵਾਸ ਹੈ ।
खुधिआ कै बालक बिललात अकुलात अत असथन पान करि सहजि निवास है ।

जैसे बच्चा भूख लगने पर रोता है, परन्तु माँ के स्तनों से दूध पीकर शान्त हो जाता है।

ਤੈਸੇ ਮਾਇਆ ਭ੍ਰਮਤ ਭ੍ਰਮਤ ਚਤੁਰ ਕੁੰਟ ਧਾਵੈ ਗੁਰ ਉਪਦੇਸ ਨਿਹਚਲ ਗ੍ਰਿਹਿ ਪਦ ਬਾਸ ਹੈ ।੩੪੯।
तैसे माइआ भ्रमत भ्रमत चतुर कुंट धावै गुर उपदेस निहचल ग्रिहि पद बास है ।३४९।

इसी प्रकार सांसारिक मोह-माया में लिप्त मानव मन भी इधर-उधर भटकता रहता है, परन्तु सद्गुरु के उपदेश से वह स्थिर और शान्त हो जाता है। (349)