कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 542


ਜੈਸੇ ਖਾਂਡ ਖਾਂਡ ਕਹੈ ਮੁਖਿ ਨਹੀ ਮੀਠਾ ਹੋਇ ਜਬ ਲਗ ਜੀਭ ਸ੍ਵਾਦ ਖਾਂਡੁ ਨਹੀਂ ਖਾਈਐ ।
जैसे खांड खांड कहै मुखि नही मीठा होइ जब लग जीभ स्वाद खांडु नहीं खाईऐ ।

जैसे चीनी, चीनी कहने से मुंह में चीनी का मीठा स्वाद महसूस नहीं होता। जब तक चीनी को जीभ पर न रखा जाए, तब तक उसका स्वाद महसूस नहीं हो सकता।

ਜੈਸੇ ਰਾਤ ਅੰਧੇਰੀ ਮੈ ਦੀਪਕ ਦੀਪਕ ਕਹੈ ਤਿਮਰ ਨ ਜਾਈ ਜਬ ਲਗ ਨ ਜਰਾਈਐ ।
जैसे रात अंधेरी मै दीपक दीपक कहै तिमर न जाई जब लग न जराईऐ ।

अंधेरी रात में दीपक-दीप कहने से अंधेरा तब तक दूर नहीं होता जब तक दीपक न जलाया जाए।

ਜੈਸੇ ਗਿਆਨ ਗਿਆਨ ਕਹੈ ਗਿਆਨ ਹੂੰ ਨ ਹੋਤ ਕਛੁ ਜਬ ਲਗੁ ਗੁਰ ਗਿਆਨ ਅੰਤਰਿ ਨ ਪਾਈਐ ।
जैसे गिआन गिआन कहै गिआन हूं न होत कछु जब लगु गुर गिआन अंतरि न पाईऐ ।

बार-बार ज्ञान कहने से ज्ञान प्राप्त नहीं होता। यह तो केवल हृदय में भगवान का नाम बसाने से ही प्राप्त होता है।

ਤੈਸੇ ਗੁਰ ਧਿਆਨ ਕਹੈ ਗੁਰ ਧਿਆਨ ਹੂ ਨ ਪਾਵਤ ਜਬ ਲਗੁ ਗੁਰ ਦਰਸ ਜਾਇ ਨ ਸਮਾਈਐ ।੫੪੨।
तैसे गुर धिआन कहै गुर धिआन हू न पावत जब लगु गुर दरस जाइ न समाईऐ ।५४२।

इसी प्रकार केवल बार-बार गुरु के दर्शन की प्रार्थना करने से गुरु का ध्यान नहीं हो सकता। यह तभी संभव है जब मनुष्य अपने हृदय तक गुरु के दर्शन की उत्कट अभिलाषा में लीन हो जाए। (542)