कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 226


ਗੁਰਮਤਿ ਸਤਿ ਰਿਦੈ ਸਤਿਰੂਪ ਦੇਖੇ ਦ੍ਰਿਗ ਸਤਿਨਾਮ ਜਿਹਬਾ ਕੈ ਪ੍ਰੇਮ ਰਸ ਪਾਏ ਹੈ ।
गुरमति सति रिदै सतिरूप देखे द्रिग सतिनाम जिहबा कै प्रेम रस पाए है ।

सच्चे गुरु की शिक्षाओं को हृदय में बसाकर गुरु के सिख की आंखें सच्चे प्रभु को हर जगह हर जगह व्याप्त देखती हैं। वह निरंतर प्रभु का नाम जपता है और हर समय नाम सिमरन के प्रेममय अमृत का आनंद लेता है।

ਸਬਦ ਬਿਬੇਕ ਸਤਿ ਸ੍ਰਵਨ ਸੁਰਤਿ ਨਾਦ ਨਾਸਕਾ ਸੁਗੰਧਿ ਸਤਿ ਆਘ੍ਰਨ ਅਘਾਏ ਹੈ ।
सबद बिबेक सति स्रवन सुरति नाद नासका सुगंधि सति आघ्रन अघाए है ।

गुरु से ज्ञान की सच्ची बातें सुनकर शिष्य के कान उस धुन को सुनने में मग्न रहते हैं। नाम की सुगंध को सूंघकर उसके नथुने नाम की मधुर सुगंध से तृप्त हो जाते हैं।

ਸੰਤ ਚਰਨਾਮ੍ਰਤ ਹਸਤ ਅਵਲੰਬ ਸਤਿ ਪਾਰਸ ਪਰਸਿ ਹੋਇ ਪਾਰਸ ਦਿਖਾਏ ਹੈ ।
संत चरनाम्रत हसत अवलंब सति पारस परसि होइ पारस दिखाए है ।

सच्चे गुरु के चरणों का स्पर्श पाकर गुरु का सिख सच्चे गुरु की तरह दार्शनिक पत्थर बन जाता है।

ਸਤਿਰੂਪ ਸਤਿਨਾਮ ਸਤਿਗੁਰ ਗਿਆਨ ਧਿਆਨ ਗੁਰ ਸਿਖ ਸੰਧਿ ਮਿਲੇ ਅਲਖ ਲਖਾਏ ਹੈ ।੨੨੬।
सतिरूप सतिनाम सतिगुर गिआन धिआन गुर सिख संधि मिले अलख लखाए है ।२२६।

इस प्रकार गुरु के वचनों का पाँचों इन्द्रियों से रसास्वादन करके तथा सच्चे गुरु के साथ एकाकार होकर, गुरु का सिख उस प्रभु को जान लेता है जिसका रूप और नाम शाश्वत है। यह सब सच्चे गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान के द्वारा होता है। (226)