सच्चे गुरु की शिक्षाओं को हृदय में बसाकर गुरु के सिख की आंखें सच्चे प्रभु को हर जगह हर जगह व्याप्त देखती हैं। वह निरंतर प्रभु का नाम जपता है और हर समय नाम सिमरन के प्रेममय अमृत का आनंद लेता है।
गुरु से ज्ञान की सच्ची बातें सुनकर शिष्य के कान उस धुन को सुनने में मग्न रहते हैं। नाम की सुगंध को सूंघकर उसके नथुने नाम की मधुर सुगंध से तृप्त हो जाते हैं।
सच्चे गुरु के चरणों का स्पर्श पाकर गुरु का सिख सच्चे गुरु की तरह दार्शनिक पत्थर बन जाता है।
इस प्रकार गुरु के वचनों का पाँचों इन्द्रियों से रसास्वादन करके तथा सच्चे गुरु के साथ एकाकार होकर, गुरु का सिख उस प्रभु को जान लेता है जिसका रूप और नाम शाश्वत है। यह सब सच्चे गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान के द्वारा होता है। (226)