जिस प्रकार कुएं में रहने वाला मेंढक समुद्र की महानता और विस्तार को नहीं जान सकता, तथा खोखला शंख वर्षा के जल की उस अमृतमयी बूंद का महत्व नहीं समझ सकता, जो सीप पर गिरकर मोती बन जाती है।
जैसे उल्लू सूर्य के प्रकाश को नहीं जान सकता, या तोता रेशमी कपास के वृक्ष के बेस्वाद फलों को नहीं खा सकता, न ही उनसे प्रेम कर सकता है।
जिस प्रकार कौआ हंसों की संगति का महत्व नहीं जान सकता, उसी प्रकार बंदर हीरे-जवाहरातों का मूल्य नहीं समझ सकता।
इसी प्रकार अन्य देवताओं का उपासक भी सच्चे गुरु की सेवा का महत्त्व नहीं समझ सकता। वह बहरे और गूंगे व्यक्ति के समान है, जिसका मन सच्चे गुरु के उपदेशों के प्रति ग्रहणशील नहीं है और इसलिए वह उन पर अमल नहीं कर सकता। (470)