कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 470


ਕੂਆ ਕੋ ਮੇਢਕੁ ਨਿਧਿ ਜਾਨੈ ਕਹਾ ਸਾਗਰ ਕੀ ਸ੍ਵਾਂਤ ਬੂੰਦ ਮਹਿਮਾ ਨ ਸੰਖ ਜੀਅ ਜਾਨਈ ।
कूआ को मेढकु निधि जानै कहा सागर की स्वांत बूंद महिमा न संख जीअ जानई ।

जिस प्रकार कुएं में रहने वाला मेंढक समुद्र की महानता और विस्तार को नहीं जान सकता, तथा खोखला शंख वर्षा के जल की उस अमृतमयी बूंद का महत्व नहीं समझ सकता, जो सीप पर गिरकर मोती बन जाती है।

ਦਿਨਕਰਿ ਜੋਤਿ ਕੋ ਉਦੋਤ ਕਹਾ ਜਾਨੈ ਉਲੂ ਸੇਂਬਲ ਸੈ ਕਹਾ ਖਾਇ ਸੂਹਾ ਹਿਤ ਠਾਨਈ ।
दिनकरि जोति को उदोत कहा जानै उलू सेंबल सै कहा खाइ सूहा हित ठानई ।

जैसे उल्लू सूर्य के प्रकाश को नहीं जान सकता, या तोता रेशमी कपास के वृक्ष के बेस्वाद फलों को नहीं खा सकता, न ही उनसे प्रेम कर सकता है।

ਬਾਇਸ ਨ ਜਾਨਤ ਮਰਾਲ ਮਾਲ ਸੰਗਤਿ ਕੋ ਮਰਕਟ ਮਾਨਕੁ ਹੀਰਾ ਨ ਪਹਿਚਾਨਈ ।
बाइस न जानत मराल माल संगति को मरकट मानकु हीरा न पहिचानई ।

जिस प्रकार कौआ हंसों की संगति का महत्व नहीं जान सकता, उसी प्रकार बंदर हीरे-जवाहरातों का मूल्य नहीं समझ सकता।

ਆਨ ਦੇਵ ਸੇਵਕ ਨ ਜਾਨੈ ਗੁਰਦੇਵ ਸੇਵ ਗੂੰਗੇ ਬਹਰੇ ਨ ਕਹਿ ਸੁਨਿ ਮਨੁ ਮਾਨਈ ।੪੭੦।
आन देव सेवक न जानै गुरदेव सेव गूंगे बहरे न कहि सुनि मनु मानई ।४७०।

इसी प्रकार अन्य देवताओं का उपासक भी सच्चे गुरु की सेवा का महत्त्व नहीं समझ सकता। वह बहरे और गूंगे व्यक्ति के समान है, जिसका मन सच्चे गुरु के उपदेशों के प्रति ग्रहणशील नहीं है और इसलिए वह उन पर अमल नहीं कर सकता। (470)