सरवन नामक समर्पित पुत्र ने अपने अंधे माता-पिता की प्रेम और समर्पण के साथ सेवा की, जिससे उसे दुनिया में प्रसिद्धि और प्रशंसा मिली।
भगवान की यह कैसी विचित्र लीला है कि भक्त प्रह्लाद ने अपने पिता की सेवा करने के स्थान पर उनके आदेश की अवहेलना की, जिसमें कहा गया था कि वह भगवान (राम) का नाम न लें। भगवान ने हर्नाकाश (प्रह्लाद के पिता) का नाश कर दिया और इस प्रकार प्रह्लाद की रक्षा की।
ऐसा कहा जाता है कि ऋषि शुकदेव 12 वर्षों तक अपनी माता के गर्भ में रहकर उन्हें कष्ट देते रहे, लेकिन जब उनका जन्म हुआ तो वे एक सिद्ध ऋषि निकले तथा उस समय जन्म लेने वाले सभी लोग दिव्य शक्तियों से युक्त तपस्वी निकले।
उनकी रहस्यमय लीला अवर्णनीय और अद्भुत है। कोई नहीं जान सकता कि वे कब, कहाँ, किस पर कृपा करेंगे और किसको उनकी कृपा प्राप्त होगी। (४३६)