जिस प्रकार एक पक्षी अपने घोंसले से अपना अंडा छोड़कर खुले आकाश में उड़ जाता है, किन्तु अंडे में मौजूद बच्चे की चिंता के कारण वापस लौट आता है,
जिस प्रकार एक मजदूर स्त्री विवश होकर अपने बच्चे को घर पर छोड़कर लकड़ी बीनने जंगल में जाती है, परंतु अपने बच्चे की याद मन में रखती है और घर लौटकर सुख पाती है;
जैसे पानी का एक तालाब बनाकर उसमें मछलियाँ छोड़ दी जाती हैं, ताकि वे अपनी इच्छानुसार पुनः पकड़ी जा सकें।
इसी प्रकार मनुष्य का चंचल मन चारों दिशाओं में भटकता रहता है। परन्तु सच्चे गुरु द्वारा आशीर्वादित जहाज रूपी नाम के कारण भटकता हुआ पक्षी रूपी मन आत्मा में आकर विश्राम करता है। (184)