कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 184


ਘੋਸਲਾ ਮੈ ਅੰਡਾ ਤਜਿ ਉਡਤ ਅਕਾਸਚਾਰੀ ਸੰਧਿਆ ਸਮੈ ਅੰਡਾ ਹੋਤਿ ਚੇਤਿ ਫਿਰਿ ਆਵਈ ।
घोसला मै अंडा तजि उडत अकासचारी संधिआ समै अंडा होति चेति फिरि आवई ।

जिस प्रकार एक पक्षी अपने घोंसले से अपना अंडा छोड़कर खुले आकाश में उड़ जाता है, किन्तु अंडे में मौजूद बच्चे की चिंता के कारण वापस लौट आता है,

ਤਿਰੀਆ ਤਿਆਗ ਸੁਤ ਜਾਤ ਬਨ ਖੰਡ ਬਿਖੈ ਸੁਤ ਕੀ ਸੁਰਤਿ ਗ੍ਰਿਹ ਆਇ ਸੁਖ ਪਾਵਈ ।
तिरीआ तिआग सुत जात बन खंड बिखै सुत की सुरति ग्रिह आइ सुख पावई ।

जिस प्रकार एक मजदूर स्त्री विवश होकर अपने बच्चे को घर पर छोड़कर लकड़ी बीनने जंगल में जाती है, परंतु अपने बच्चे की याद मन में रखती है और घर लौटकर सुख पाती है;

ਜੈਸੇ ਜਲ ਕੁੰਡ ਕਰਿ ਛਾਡੀਅਤ ਜਲਚਰੀ ਜਬ ਚਾਹੇ ਤਬ ਗਹਿ ਲੇਤ ਮਨਿ ਭਾਵਈ ।
जैसे जल कुंड करि छाडीअत जलचरी जब चाहे तब गहि लेत मनि भावई ।

जैसे पानी का एक तालाब बनाकर उसमें मछलियाँ छोड़ दी जाती हैं, ताकि वे अपनी इच्छानुसार पुनः पकड़ी जा सकें।

ਤੈਸੇ ਚਿਤ ਚੰਚਲ ਭ੍ਰਮਤ ਹੈ ਚਤੁਰ ਕੁੰਟ ਸਤਿਗੁਰ ਬੋਹਿਥ ਬਿਹੰਗ ਠਹਰਾਵਈ ।੧੮੪।
तैसे चित चंचल भ्रमत है चतुर कुंट सतिगुर बोहिथ बिहंग ठहरावई ।१८४।

इसी प्रकार मनुष्य का चंचल मन चारों दिशाओं में भटकता रहता है। परन्तु सच्चे गुरु द्वारा आशीर्वादित जहाज रूपी नाम के कारण भटकता हुआ पक्षी रूपी मन आत्मा में आकर विश्राम करता है। (184)