हे मित्र! भोर होने से पहले, जब दीपक की रोशनी धीमी हो जाती है और सजे हुए विवाह-शय्या पर रखे फूल अभी मुरझाये नहीं होते,
सूर्योदय से पहले जब तक फूल खिल न जाएं और भौंरे उनकी ओर आकर्षित न हो जाएं तथा भोर होने से पहले जब वृक्षों पर पक्षियों ने चहचहाना शुरू न कर दिया हो;
जब तक आकाश में सूर्य चमकता रहे, मुर्गे की बांग और शंख की ध्वनि सुनाई न दे,
तब तक सभी सांसारिक इच्छाओं से मुक्त होकर पूर्ण आनंद में लीन होकर प्रभु मिलन के आनंद में लीन रहना चाहिए। अपने प्रिय प्रभु से प्रेम की परंपरा निभाने का यही समय है। (सच्चे गुरु से दीक्षा लेकर यही है)