कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 661


ਜਉ ਲਉ ਦੀਪ ਜੋਤ ਹੋਤ ਨਾਹਿਤ ਮਲੀਨ ਆਲੀ ਜਉ ਲਉ ਨਾਂਹਿ ਸਿਹਜਾ ਕੁਸਮ ਕੁਮਲਾਤ ਹੈ ।
जउ लउ दीप जोत होत नाहित मलीन आली जउ लउ नांहि सिहजा कुसम कुमलात है ।

हे मित्र! भोर होने से पहले, जब दीपक की रोशनी धीमी हो जाती है और सजे हुए विवाह-शय्या पर रखे फूल अभी मुरझाये नहीं होते,

ਜਉ ਲਉ ਨ ਕਮਲਨ ਪ੍ਰਫੁਲਤ ਉਡਤ ਅਲ ਬਿਰਖ ਬਿਹੰਗਮ ਨ ਜਉ ਲਉ ਚੁਹਚੁਹਾਤ ਹੈ ।
जउ लउ न कमलन प्रफुलत उडत अल बिरख बिहंगम न जउ लउ चुहचुहात है ।

सूर्योदय से पहले जब तक फूल खिल न जाएं और भौंरे उनकी ओर आकर्षित न हो जाएं तथा भोर होने से पहले जब वृक्षों पर पक्षियों ने चहचहाना शुरू न कर दिया हो;

ਜਉ ਲਉ ਭਾਸਕਰ ਕੋ ਪ੍ਰਕਾਸ ਨ ਅਕਾਸ ਬਿਖੈ ਤਮਚੁਰ ਸੰਖ ਨਾਦ ਸਬਦ ਨ ਪ੍ਰਾਤ ਹੈ ।
जउ लउ भासकर को प्रकास न अकास बिखै तमचुर संख नाद सबद न प्रात है ।

जब तक आकाश में सूर्य चमकता रहे, मुर्गे की बांग और शंख की ध्वनि सुनाई न दे,

ਤਉ ਲਉ ਕਾਮ ਕੇਲ ਕਾਮਨਾ ਸਕੂਲ ਪੂਰਨ ਕੈ ਹੋਇ ਨਿਹਕਾਮ ਪ੍ਰਿਯ ਪ੍ਰੇਮ ਨੇਮ ਘਾਤ ਹੈ ।੬੬੧।
तउ लउ काम केल कामना सकूल पूरन कै होइ निहकाम प्रिय प्रेम नेम घात है ।६६१।

तब तक सभी सांसारिक इच्छाओं से मुक्त होकर पूर्ण आनंद में लीन होकर प्रभु मिलन के आनंद में लीन रहना चाहिए। अपने प्रिय प्रभु से प्रेम की परंपरा निभाने का यही समय है। (सच्चे गुरु से दीक्षा लेकर यही है)